Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ(रुति ४) ३८४

५०. ।भीमचंद दा मेल। नारद ने खंभ भेट करने॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>५१
दोहरा: सकल सैलपति थिर रहे, निज रजधानी जाइ।
आन मानि सतिगुरू की, अुर हंकार बिलाइ ॥१॥
चौपई: जहां कहां हुइ तूशनि थिरे।
भीमचंद नर पठवनि करे।
प्रभु जी! भूलो मैण बशीजै।
निज बखशिंद बिरद लखि लीजै ॥२॥
हम ने अपनो सगल बिगारा१।
भयो बिरोध निताप्रति भारा।
अबि मैण शरण परो बल हारी२।
गौरव महिमा जानि तिहारी ॥३॥
गन राजे अुपदेशति मोही।
जिस ते रावरि सोण रण होही३।
कहे अपर के बिगरति रहो।
अबि मैण शरनि, महातम लहो४ ॥४॥
इज़तादिक लिखि बिनै बडेरी।
गुर ढिग पठी छिमहु मति मेरी।
तबि सतिगुर कागद पठवायो।
दया सिंघ सुनि बाक अलायो ॥५॥
अबि तौ भयो निम्र तजि गरबा।
खोइ दरब अरु जसु जग सरबा।शरनि परो चाहति हुइ हित मैण५।
लखो महातम मै६ कुछ चित मैण ॥६॥
अुचित संधि जे जानहु तांही।
लिहु मिलाइ श्री प्रभु! पग पांही।


१विगाड़िआ है।
२बल हारके।
३होइआ सी।
४लख लिआ है।
५शरण पिआ चाहुंदा है (इस तोण जापदा है कि हुण) हित विच होणा है।
६महातम वाले ।महातममय॥
पर शुध पाठ-महातम को-जापदा है, लिखारी दी अुकाई है।

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