Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ३८९
५१. ।वापस मुड़े। जपजी अरथ। तलवंडी॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>५२
दोहरा: सुनि सतिगुरु के गमनि को,
सिख संगति समुदाइ।
फल मधुरे बहु भांति के,
पंथ हेतु दे लाइ१ ॥१॥
चौपई: मनो कामना सभि ने पाई।
क्रिपा द्रिशटि पिखि सिख समुदाई।
सिरे पाअु मुज़खनि को दीने।
निज निज सदन बिसरजनि कीने ॥२॥
जथा जोग सभिहिनि सोण करि कै।
गमने सतिगुर हय परि चरि कै।
जहि बावन होए अवतार।
अदिती कज़सप सदन मझार ॥३॥
बारामूला पुरि कौ नाम*।तिस थल महि रिखि बर२ को धाम।
बड कशमीर देश जहि तीका।
कज़सप कीनि बसावनि नीका ॥४॥
तहां आइ अुतरे गुर पूरे।
चहु दिशि महि परबत थल रूरे।
बारामूले महि सिख जेते।
सुनि सतिगुरु ढिग पहुचे तेते ॥५॥
सरब भांति करि सेव महानी।
पूरी भई जु बाणछा ठानी।
गुरमति को दे करि अुपदेशा।
गाढी सिज़खी कीनि विशेशा ॥६॥
निसि बिताइ करि प्रात अरोहे+।
१लिआ दिज़ते।
*एथे सतिगुराण दे अुतारे दे थाअुण गुरदुआरा दरया दे किनारे अुज़ते है।
२भाव कज़सप।
+एथे सतिगुरू जी कुछ दिन रहे हन। इज़को रात रहि के नहीण टुर पए। इरद गिरद शिकार
चड़्हदे रहे हन। जिज़थे हुण सिंघ पुरा गाअुण है, इस तोण अुरे जिज़थे पुराणी सड़क लघिआ करदी
सी, इज़थे इक बहिलोल नामे फकीर पास जा के बैठिआ करदे सन जो अुहनां दे सतिसंग नाल तर