Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३९०

४८. ।बुज़धू दा आवा कज़चा। भाई लखू॥
४७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ४९
दोहरा: बुज़धू नाम कुलाल१ इक,
सतिगुर को सिख धीर।
लवपुरि महि तिस को सदन,
जाति गुरू के तीर ॥१॥
चौपई: सिज़खनि की बहु सेवा करिई।
धरम किरत की जीवा धरिई।
गुरू भरोसे कार करंता।
अपने सभि कारज निबहंता ॥२॥
लाइ ईणटका केर पजावै।
बेचहि पुरि महि गुग़र चलावै।
गुरु सिज़खनको करहि अहारा।
पुरहि भावना रिदे मझारा ॥३॥
एक बार तिन कीन पजावा।
कई हग़ार दरब को लावा।
ब्रिंद मजूर कार को करिते।
ईणधन अधिक ईणटका धरिते ॥४॥
गिर सम अूचे चिनि कै कीना।
रहे सकेलति बहुत महीना२।
लागति लगो अधिक ही दरबा।
लीनि बणक ते रिं करि३ सरबा ॥५॥
बिकहि ईणटका दैबो तोहि।
कितिक मास महि इहु सिध होहि४।
दरब अुधारो ले करि सोई।
देति मजूर मजूरी ओई ॥६॥
नर सहज़स्रई५ कार कमावैण।
संधा होइ दिहाड़ी पावै।


१घुमिआर।
२इकज़त्र करदे रहे बहुते महीने।
३करग़ा करके।
४पक जाएगा।
५सैणकड़े ही।

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