Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ५०
६. ।मरद दा मूंह ना फिटकारना। निगाहे दा मुरीद वंजारा॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>७
दोहरा: *भई प्राति सतिगुर तबै शसत्र बसत्र कौ पाइ।
अलकार दीपति रतन सुंदर रूप सुहाइ ॥१॥
चौपई: सभा सथान आनि१ गुर पूरे।
सुनि करि पहुंचे सिंघ हग़ूरे।
सिर नम्री करि दरशन चिते।
वाहिगुरू जी की कहि फते ॥२॥
लगो दिवान खालसा आयो।
सुर गनमहि जिम इंद्र सुहायो।
जो संगति दरशन हित आई।
करि करि नमो थिरे समुदाई ॥३॥
इक टक हेरति हैण नर नारी।
सिर पर ढुरहि चौर बहु बारी।
चहुदिशि दूर दूर लगि बैसे।
अूचे धुनि बोले प्रभु ऐसे ॥४॥
अस इसत्री को, संगति मांही?
मरद नहीण फिटकारो जाणही।
छोटा बडा होइ बय कोई।
रिदै सुमति धरि कहो न जोई२ ॥५॥
संगति बिखै सिज़खंी जेती।
गुरू बाक सुनि तूशनि तेती।
कर जोरे इक सिज़ख की तनीआ।
खरी होहि सभि महि बच भनीआ ॥६॥
सज़चे पातिशाह! मैण दीन३।
मरद न कबि फिटकारनि कीनि।
अपना पुज़त्र न झिरको कब ही।
ग़ाति मरद की लखि बड सभि ही४ ॥७॥
*इह सौ साखी दी ४३वीण साखी है।
१आए।
२जिस ने स्रेशट बुज़धी धारके (फिटकार दा वाक) ना किहा होवे।
३मैण रीब ने।
४मरद दी जात सभ वज़डी जाणी है।