Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रतापसूरज ग्रंथ (राशि ९) ५१
५. ।भाई गोणदे दा धान मगन चरनीण लिवलीन होणा॥
४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>६
दोहरा: भाई गोणदा गुर भगत,
गुर मूरति को धान।
दरसहि दरशन रिदे महि,
सदा नेम इम जानि ॥१॥
चौपई: श्री सतिगुर पूरन हरिराइ।
कितिक समो ढिग सेव कमाइ।
भए प्रसंन एक दिन हेरा।
कहो बाक श्री मुख तिस बेरा ॥२॥
काबल केर वलाइत जोइ।
तहि की संगति सिख सभि कोइ।
तहां रहहु सभि की सुध लेहु।
सिज़खी को अुपदेश करेहु ॥३॥
तहि की जो गुर कार अशेश।
करहु सकेलनि सगरे देश।
संत, अथित, सिज़खनि अचवावहु।
गुर की दे बिसाल चलावहु ॥४॥
सो मुजरे१ सगरी पर जाइ।
अपर देग जेतिक समुदाइ२।
सकल हग़ूर पठावन करो।
सिख संगति ते जेतिक धरो३ ॥५॥
सुनि आगा को हुइ करि बिदा।
बंदन करि गमनो सो तदा।
जाइ वलाइतमैण तबि रहो।
सभि संगत ते धन को लहो ॥६॥
सिज़ख अथिज़तनि जितिक अचावहि।
सो सगरी गुर मुजरे पावहि।
धरमसाल काबल महि कीनसि।
१सफली हो जाएगी।
२देग तोण होर जो वधे।
३लवो।