Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३९९

५७. ।मिज़टी मुसलमान की॥
५६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५८
दोहरा: पुन इक दिन गमने सभा,
नदन श्री हरि राइ।
अुमरावनि महि शाहु ढिग,
बैठो अूची थाइ ॥१॥
चौपई: पूरब दुशटनि शाहु सिखायो।
श्री नानक निज शबद बनायो।
तिस महि करो तुरक मति खंडन।
हिंदुनि मति को कीनसि मंडन ॥२॥
प्रिथी बिखै जु तुरक दफनावैण।
सो भी जरहि अगनि दिपतावैण।
बुझहु रामराइ के आए।
का अुज़तर इस कहु बतलाए ॥३॥
इज़तादिक कहि शाहु सिखायो।
जबि श्री रामराइ चलि आयो।
अपर प्रसंग अनेक चलाए।
जे अुलमाअु तहां समुदाए ॥४॥
जुकति अुकति करि मति चतुराई।शाहु सुनावहि हरख अुपाई।
चले प्रसंग बूझनो चहो।
श्री नानक जी इह का कहो:- ॥५॥
श्री मुखवाक:
म १ ॥
मिटी मुसलमान की पेड़ै पई कुमिआर ॥
घड़ि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥
जलि जलि रोवै बपुड़ी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥
नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतारु ॥२॥
चौपई: करहु माइना सभिनि सुनाइ।
इह का कहो देहु समुझाइ?
सुनि श्री रामराइ मन जाना।
-गन दोखी सिखराइ महाना ॥६॥

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