Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ४००

५०. ।कंबर बेग बज़ध॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>५१
दोहरा: काबल बेग सु बेग हति१, देखि तुरक सरदार।
सोचति चित हटि फरक करि, खरे दूरि लखि हार ॥१॥
तोटक छंद: पिखि काबल बेग मरो रन मैण।
बनीआ जिम लूट लयो बन मैण।
चित बेगलला दुख पाइ घनो।
-बड बीर हतो गुर काल मनो ॥२॥
अबि कौन भिरे सवधान बनै।
जुति सैन गुरू करि जंग हनै।
जिस पै बिसवास हुतो जय को।
जम धाम गयो, गुर दै भय को२ ॥३॥
जहि काबलबेग खरो हुइबो।
थिर जंग बहादर हैकुइबो३?
तिस हीन अबै रन कौन करै?
गहि आयुध को गुर अज़ग्र अरै?- ॥४॥
मन दीन बनो बहु बेगलला।
पिखि कंबर बेग सु धीर भला।
कहि बाक न चिंत कछू धरीए।
रण भीम रचौण पिखिबो करीए ॥५॥
गन शज़त्रनि को तरवारिन सोण।
कतलाम करोण बहु वारन सोण।
पंज सै असवारनि संग लए।
निज दुंदभि दोहर चोब दए ॥६॥
तुपकानि चलावति नेर करो।
निज हार लखे अुर कोप भरो।
गुर के तन घाव लघू जु लगो।
छुटि श्रोंति चीर सु रंग पगो ॥७॥
अुतरो ततकालहि जोधि बली।


१मारिआ गिआ।
२गुरू साळ भै दे रिहा है।
३कौं। (अज़गे) टिके।

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