Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४०४

जीवन१ कौ दुखदायक पापी।
बाकुल करहि महां संतापी ॥३४॥
गुर राखहिणगे कैद मझारी।
कहां रुधर को पाइण अहारी।
सुनि तेईआ चित अतिशै त्रासा।
नहिण ले जाहु अबहि गुर पासा ॥३५॥
मैण तुमरे बाकन अनुसारी।
जिमि अुचरहु सो करिहौण कारी।
अबि ते आगे इही प्रसंग।
जिस बिधि होयो हम तुम संग ॥३६॥
कहै कथा को सुनहि सुनावै।
श्री गुर अमर नाम को धावै।
तहां न मैण दुख देहुण बिसाला।
सुनि प्रसंग गमनौण ततकाला ॥३७॥
करुना करहु छोर अबि जावहु।
निज अुपकार करो न मिटावहु।बिनै सुनी लालो तजि गयो।
गुरू कैद ते छूटति भयो ॥३८॥
बहुर न गोइंदवाल प्रवेशा।
सुने नाम डर धारि विशेशा।
इस प्रकार सभि रोग डराए।+
गुर पुरि बिखै न फेरो पाए२* ॥३९॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे तेईआ ताप को प्रसंग
बरनन नाम दोइ चज़तारिंसती अंसू ॥४२॥


१जीवाण ळ।
+कोई रोगां आदि ळ खिलतां दे विगाड़ तोण दज़सदा है, कोई हवावाण बूआण तोण, हुण बहुते रोग अति
निके जीअुणदे किरमां तोण सही कर रहे हन। कीह जाणीए कदे रोगां दे कारण नीवीण दरजे दी
रूहानी दुनीआण विचोण वी अज कल दी विज़दिआ ळ लभ पैं। इह गज़ल तां हुण बी मंनी जा रही है
कि आपणे तन ते मन दी मग़बूती रोगां दा मुकाबला करदी ते अुहनां ळ दलदी ते जिज़तदी है,
इसी तर्हां रोग दे कारणां विच बी कोई जिरमां वाणू इस तोण बी सूखम कोई होर गज़ल होवे, इह
पता लगणा संभव है। पुरातन हिंदी विदवान ते तपज़सी लोक इह गज़ल मंनदे सन कि रोगां दे
कारण नीवेण किसम दीआण अद्रिज़श रूहानी वकतीआण बी हन।
२(किसे रोग ने) फेरा ना पाइआ।
*भाव इह है कि आपणी आतमक शकती नाल गुरू जी नेआपणी नगरी ळ अरोग रज़खिआ।

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