Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५४
कलपलता = कलपा बेल, जीकूं कलप ब्रिज़छ है तीकूं कवि जी ने कलपलता
दी संभावना कीती है।
भोवा = भरपूर।कै कै = करके।
खैकै = खै करके, दूर करके, नाश करके।
अरथ: (इस सिज़खी रूपी वेल दी द्रिड़्हता लई कलीधर जी ने) खालसा पंथ कलप
ब्रिज़छ बीजिआ, जो सतिगुर दे तप (दे आसरे आपणीआण) जड़्हां ते द्रिड़
खलोता है, जिस दी छाइआ पाके सिज़ख संगति दोहां लोकाण (दे विच) सुख पैदा
कर (सकदी) है ॥३५॥
(तांते हुण रूपक इह है कि सारे इलाही) गुणां (नाल) भरपूर सिज़खी (इक) कलप
वेल (वाणू) है, (ते) इह (पंथ खालसा रूप कलप ब्रिज़छ है जो) तिस (कलप
वेल) दा द्रिड़्ह आश्रा (बन के खड़ा) होइआ है, (तांते, इस खालसा रूपी
कलप ब्रिज़छ ळ जो सरब गुण संपंन सिज़खी वेल नाल प्रफुज़लत ते विहड़त खड़ा
है, ते इस दे रचंहार) सारिआण (सतिगुराण) ळ मैण मज़था टेकके ग्रंथ दी
रचना करदा हां, चिज़त दी चिंता दूर करके ॥३६॥
।कलीधर नमसकार॥
दोहरा: पुनहु पुनहु करि करि नमो, पद पंकज गुर केर।
कलगीधर परहरि अरिनि, रंच करे जिन मेरु ॥३७॥
परहरि = खो देणा, नाश करना। अरिनि = वैरीआण ळ।
रंच-रता कु, थोड़ा, छोटा, निका,तुज़छ। ।संस: नणच = निका, नीणवाण॥
मेरु = सुमेर परबत। कोई अुज़चा पहाड़, भाव अुज़चा। बली। ।संस: मेहु:॥
अरथ: श्री गुर कलीधर जी दे चरनां कवलां पर मैण बार बार नमसकार करदा हां,
जिन्हां ने (परजा ते धरम दे) वैरीआण दे नाश करन (हित) तुज़छ जीवाण ळ
(बलवान ते) अुज़चे कर दिज़ता।
।दसम गुर रूपक॥
कबिज़त: देन प्रहलाद प्रहलाद को लखो सु दैत
दैत के बिदारिबे को रूप नरसिंघ को।
हार दे बलीन को जुहार ले बलीन को
हतन लक पति रन राम नरसिंघ को।
कुपित कुपत पुरि करे हैण कु पति कूट
हेरि हेरि हहिरे जिअुण हेरि म्रिग सिंघ को।
तैसे तेज तर ते तुरक तरु तोरन को
जग मैण जनम भयो श्री गुबिंद सिंघ को ॥३८॥
प्रहलाद = (खुशी) अनद ।ससं: प्रहलाद॥।
प्रहलाद = इक भगत दा नाम जो ह्रिनकशप दैणत दा पुज़त्र सी, पर आप
अकाल पुरख दा भगत सी।