Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४०४
५०. ।गंगा राम। मूल चंद॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ५१
दोहरा: बैठो बंदन करि निकट,
पिखि श्री अरजन नाथ।
क्रिपा बिलोचन भरि रहे,
कहो बिज़प्र के साथ ॥१॥
चौपई: दिज जू! मोल अंन+ को लीजै।
पुरहु कामना सदन सिधीजै।थुरो हुतो जबि तुम ने दयो।
सतिसंगति सभि अचवन कयो ॥२॥
लेहु मोल ते दरब सवायो।
जिस ते दूर देश ते लायो++।
पुन अुधार पर बाणछत काला१।
दयो अंन तैण आनि बिसाला ॥३॥
सुनि दिज हाथ जोरि कै बोला।
प्रभु जी! मैण न लेअुण कछु मोला।
रावरि की सेवा मैण करिहौण।
जनम सुफल की आसा धरिहौण ॥४॥
सदन जान की नांहिन चाहू।
बैस बितावौण संगति मांहू।
तुम ते परे अपर को नीका?
जहि कज़लान होइ है जी का ॥५॥
नहि तुमरो दर छोरन करोण।
रावरि नाम धान ही धरौण।
सुनि बोले श्री सतिगुर तबै।
दरब सरब लिहु दिजबर अबै ॥६॥
सो ग्रिह अपने देहु पुचाइ।
कै अबि आप सु लेहु सिधाइ।
बहुरो आइ करहु सर सेवा।
+पा:-अंन मोल।
++पा:-चल आयो।
१अुधार अुते अते लोड़ समेण।
पा:-करि।