Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ४०६

५८. ।श्री गुरू हरिराइ जी ने पुज़त्र तिआगणा॥
५७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५९
दोहरा: काग़ी गन अुलमाअु जे, करति दैख की बात।
कई बार तरकति रहैण, करि दलील बज़खात ॥१॥
चौपई: करति बाद दुइ चंद दिखाए।
दिवस बिखै तारे निकसाए।
इज़तादिक अग़मति तिन कारन।
साहिबग़ादे करी दिखारनि ॥२॥
पुन इक दिन बहु बाद अुठावा।
श्री नानक कौ शबद अलावा।
-मिज़टी मुसलमान की जोइ।
इस को अरथ कहो किम होइ? - ॥३॥
एव शरईअनि शाहु सिखायो।
सो प्रसंग बिच सभा चलायो।
तबि ही तुमरे पुज़त्र बिचारा।
-अरथ वासतव करैण अुचारा ॥४॥
बिगरहिशाहु शर्हा मैण गाढो।
हिंदुनि संग बाद जिस बाढो-।
यां ते नहीण जथारथ कहो।
रस नौरंग सोण राखनि चहो ॥५॥
अधिक दरब तिह ते नित आवै।
बड डेरे की कार चलावै।
मान राखिबे कारन शाहू।
नातुर बहस परति रिस मांहू ॥६॥
तौर कचहिरी को पिखि करि कै।
अपर रीति सोण शबद अुचरि कै।
राखो शाहु संग रस नीको।
बोलति होति भए नहि फीको१ ॥७॥
-मिज़टी बेइमान की अहै।
सगल तुरक की नहि गति इहै-।
पुन इमान की सतुति बखानी।


१(इस तर्हां) बोलदे रहे (जिस तर्हां) फिज़क न पै जावे।

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