Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ४१२

५४. ।बीबी वीरो सूरज मल ते स्री अंीराए जी जनम॥
५३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>५५
दोहरा: श्री गुरदिज़ता पुत्र तहि, लाए सतिगुरु तीर।
लीनि अंक दुलरावते, म्रिदुल बाक ते धीर ॥१॥
चौपई: जथा जोग सभि को सनमाना।
सिज़ख मसंद सुभट जे नाना।
पुन अुठि निज मंदिर को गए।
खान पान नाना बिधि कए ॥२॥संधा समै सु दीपकमाला।
जहि कहि कीनसि भयो अुजाला।
श्री हरिमंदर के चहुंदिशि मैण।
दीपक बार धरे घ्रिति जिस मैण ॥३॥
श्री अंम्रितसर की सौपान।
जहि कहि कीनि प्रकाश महान।
सुपति जथा सुख राति बिताई।
जाम निसा ते गुरू नहाई ॥४॥
गाइ रबाबी आसावार।
सज़तिनाम सिमरन जैकार।
बैठहि सतिगुरु लाइ दिवान।
आवहि सिज़ख अनिक लै गान ॥५॥
इसी प्रकार बिते बहु मास।
सतिगुरु बिलसति बिबिधि बिलास।
धरि दमोदरी गरभ दुतिय तबि।
केतिक मास बितावनि किय जबि ॥६॥
भई प्रसूता जनमी कंना।
बड भागनि सभिहिनि ते धंनां।
श्री गंगा ने ताहि निहारा।
बीरो! नाम बिचार अुचारा ॥७ ॥
मात करति प्रतिपाला घनी।
पारी सुता प्रेम के सनी।
कबि दादी ले अंक दुलारहि।
गुरु घर जनमी पुंन अुदारहि ॥८॥

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