Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ४१२

५२. ।भाई जेठा, शमस बेग बज़ध॥
५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>५३
दोहरा: जोधा जोध प्रबोध जुध,
करे अुथज़ल पथज़ल१।
शाहु सलेम सु अनुज जुति,
तुरक समह दबज़ल ॥१॥
पाधड़ी छंद: पिखि मरो पुज़त्र इक लरति बीर२।
तुरकान सैन पर अधिक भीर३।
तबि ललाबेग बड कोप धारि।
गुर जीत होति, सकहि न सहार ॥२॥
सौ सुभट संग जिस के अुदार।
नित रहति साथ बाणके जुझार।
मिलि खांन पान जिन सोण करंति।
हसिबे बिलास आनद धरंति ॥३॥
गिनीयंति जंग पहि प्रथम जान।
सभि लखहि शसत्र बिज़दा महान।
जिन संग बारनी४ पान कीनि।तन अलकार धारे प्रबीन ॥४॥
कुल मुल, डील गोरे दराग़।
बड मुंड मुंड५ मुख मास खाज।
बहु मोल बसत्र अूपर धरंति।
गहि गहि कमान धाए तुरंति ॥५॥
बाहन बिसाल केतिक पठान।
निज रखहि आन सभि ते महान।
जिन महि बहादरी कहि बिलद।
चंचल तुरंग चालति अमंद६ ॥६॥


१युज़ध नीती दे गिआता भाई जोधराइ सूरमे ने (सिआणप नाल जंग विच) अुथल पथल कर
दिज़ती।
२इक सूरमा पुज़त्र लड़के मारिआ देखके।
३मुशकल आ बणी।
४शराब।
५वज़डे वज़डे सिर मुंने होए।
६तेग़।

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