Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ४१२
५९. ।दोवेण पुज़त्र किवेण परखे सन?॥
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दोहरा: पूरब भी परखे हुते, दोनहु पुज़त्र बिसाल।
जग गुरता के अुचित को, ले सिख करहि निहाल१ ॥१॥
चौपई: श्रोता इम सुनि कै सुख पाइ।
बूझनि लगे कथा इस भाइ।
दोनो सुत परखे तिम कहो।
तुम सरबज़ग सरब कहु लहो ॥२॥
को पूरा अुतरो को छूछा?
कहो प्रसंग सभिनि हम पूछा।
श्री गुरबखश सिंघ सुनि ऐसे।
कथा कहनि लगि बीती जैसे ॥३॥
श्री गुरबखश सिंघअु वाच ॥
चौपई: सुनहु कथा बाणछति फल दानी।
श्री सतिगुर शरधा रजधानी।
जिस ते जनम मरन कटि जाइ।
अबचल पदवी बिखै समाइ ॥४॥
एक समेण सतिगुर के तीर।
एक सिज़ख आयहु मतिधीर।
ब्रिंद संगती संग लगाए।
दरशन करनि हेतु चलि आए ॥५॥
अनिक अुपाइन अरपनि कीनि।
अघनाशन चरननि चित दीनि।
बिकसो रिदा कमल अनुहारी।
सतिगुरू सूरज दरस निहारी ॥६॥
श्री हरिराइ मयंक मनिद।
चख चकोर भे सिज़खनि ब्रिंद।
म्रिदुज़ल चरन सुंदर अरबिंदु।
मन दासनि के थिरे मलिद ॥७॥
१(जे गुरता) लै के सिज़खां ळ निहाल करेगा। (अ) जो (साडी सिखिआ ळ लै के) जगत ळ निहाल
करेगा।