Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ५२
६. ।मालवीह परबत ते सैल॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>७
दोहरा: सकल सैलपति मेल करि, तीरथ मेले मांहि।
दान महांन शनान तन, बहुत ठानि चित लाहि१* ॥१॥
चौपई: कंचन ग़ीन तुरंग शिंगारे।
किनहु मतंग दिये मुल भारे।
बसत्र शसत्र अरु दरब बिसाला।
न्रिपनि दान दे२ बहु तिस काला ॥२॥
करि करि मेला बासुर तीन।
मुदति भए नारी नर पीन३।
रुखसद हेत गुरू ढिग आए।
सभि को सिरोपाअु पहिराए+ ॥३॥
करि करि नमो निकेत सिधारे।
मग महि गुर को सुजस अुचारे।
निज निज नगर पहूचे जाई।
पुरीकामना पिखि सुखदाई ॥४॥
कलीधर तहि रहे पिछारी।
मज़जन ठानहि तीरथ बारी४।
वहिर अखेर करहि बन मांही।
सैलनि सैल करहि अवगाही ॥५॥
जाति अनेक५ तरोवरु ठांढे।
दल फल संकल६ छाया गाढे।
चढि करि दूर सुचेता करिहीण।
नए सथल सैलनपर फिरिहीण ॥६॥
++इकदिन दूर गए जगसामी।
१चित विच लाहा (समझके)।
*पा:-चाहि।
२राजिआण ने दान दिता।
३सारे। (अ) बहुत।
+पा:-सिरोपाअु हरखाए।
४जल विच।
५अनेक जातीआण दे।
६पज़ते ते फलां नाल पूरन।
++इह सौ साखी दी ४१वीण साखी है।