Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४१५
चिरंकाल पठि पावहि जैसे१।
बोले रामदास संग शाहू।
पठहिण गाइज़त्री हम तुम पाहू ॥२०॥
अरथ समेति सुनावहिण सारी।
जो आशै२ है तांहि मझारी।
सभि के बीच पाठ तिस पढे।
पाप पुंन सभि इन सिर चढे३ ॥२१॥
इमि कहि धुनि कीनसि इस भांति।
सकल अरथ को कहि४ बज़खात।
ओअंकार अुचारन करो+।
सुनि धुनि बायू गमनति थिरो५ ॥२२॥
पाथर म्रिदुल तहां हुइ गए।
सुनि सभि लोक बिसमते भए।
द्रवो सु मन सभि को तिसकाल।
तूशनि पंडति कीनि बिसाल ॥२३॥
१जिवेण (कोई) चिर काल पड़्हके प्रापत करदा है।
२सिधांत।
३हिंदू निसचे मूजब गायत्री दा पाठ मलेछ सभा विच ते खास साधन तोण बिनां पड़्हनां विहत नहीण,
अुस निशचे वल इशारा करके श्रीजेठा वी वंग नाल इह वाक कहिणदे हन।
४अरथ कहे प्रगट, अगे अंक २७ विच बी लिखिआ है,
अरथ सहत गाइज़त्री बखानी।
+कवि जी इस तोण पहिले कहि आए हन कि गायत्री दी धुनि ते अरथ प्रगट करके दज़स दिज़ते,
फेर अुन्हां अुचारिआ है ओअंकार।
इह पद सिख लेखक गुरबाणी दे ॴ लई अकसर वरत लैणदे हन। सो कवि जी दा आशा
जापदा है कि गुर घर दे इक ओअंकार दी धुनि श्री रामदास जी ने कीती जिस नाल सभ
समाधी हो गए। कवि जी इह नहीण कहिणदे कि ओअंकार दे मगरोण अुहनां ने भूर भवा साहा तज़त
वितर आदि वाक होर बी कहे जिस तोण इस वेले गायत्री दा अुचारन सिज़ध हो सज़के, गायत्री दा
अुचार ते अरथ पहिलां हो चुज़का है।
वारतक महिमा प्रकाश विच भी लिखिआ है कि श्री जेठा जी ने सतिगुरू जी दा मंत अते
गुरबाणी सभा विच सुणाई।
फरिआदीआण ने गुरबाणी पर अुपर छंद १८ विच तरक कीती है। सो पहिलां वादीआण दे इस
दावे ळ खंडन कीता कि इन्हां ळ गायत्री आदि दी सोझी नहीण, फिर वादीआण दे दूसरे दाअवे ळ
खंडना अवज़शक है कि इन्हां नवीण बाणी रची है। अुस बाणी दी गौरवता अकबर दे दिल ते
बिठाअुणी ग़रूरी सी। दुइ कारज श्री जी ने कर दिखाए जिस तोण अकबर ळ निशचा होगिआ कि
वादीआण दी पुकार झूठी है, एह शासत्र जाणदे हन, अर गुरू की गुरबाणी शासत्राण तोण बी महान
अुतम है।
५चलदी होई हवा खड़ो गई।