Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ४१५
५७. ।गया जी। जैता सेठ॥
५६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगलाअंसू>>५८
दोहरा: सने सने श्री सतिगुरू, गमने मारग जाइ।
छेत्र सु गासुर१ के विखै, पहुचति भए सुथाइ ॥१॥
चौपई: अदभुत लीला सतिगुर दाल।
करनि हेतु नर अधिक निहाल।
घाट बामनी२ कीनसि डेरा।
चढि तुरंग फलगू३ महि हेरा* ॥२॥
बिज़प्र छेत्र के मिलि समुदाए।
सुनि आगवन गुरू ढिग आए।
जगो पवीत४ भेट लै मिले।
छेत्र महातम अुचरो भले ॥३॥
दान पुंन तीरथ बिवहारू।
कीनि अुचारन सरब प्रकारू।
करहु शनान गया पिंड दीजहि५।
देव पित्र त्रिपतावनि कीजहि ॥४॥
सुनि श्री तेग बहादर कहो।
तीरथ महातम तुम नहि लहो।
फलगू बिखै चरन जो धारे।
पितर आपने तिनहु अुधारे ॥५॥
सुर त्रिपतहि जैकार अुचारैण।
सरब अघनि को दूर निवारैण*।
सुनि दिज गन सगरे बिसमाए।
१गय+असुर छेत्र = गा नामे राखश दा तीरथ = गया। गया इक धरमी पुरख सी जिसदे
दरशन नाल लोक मुकत हुंदे सन, जिज़थे इस दी देह दज़बी सो थांगया है, इज़थे पिंड भरा के
लोकीण पित्राण ळ मुकत हो गिआ समझदे हन।
२बामनी घाट।
३बिहार देश विच फलगू नामे नदी जिस दे किनारे गया है।
सूचना-कुरछेत्र पहोए पास बी इक टिकाणे दा नां फलगू है।
*पा:-फेरा।
४जूं।
५पिंड भरावे।
*इह अुशट लकड़ नाय है। कि जद तुसाडा मत इह कहिदा है कि जिस ने फलगू नदी विच पैर
धर दिते अुस दे पिज़तर तर गए, फेर पिंड देण दी लोड़ आपे ही ना रही।