Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४२५

गंगा आदिक तीरथ१ जेई।
मज़जहिण कली काल नर तेई२।
अनगन पाप तजैण तिन मांही।
तिन को भार सहारति नांही३ ॥६॥
यां ते श्री सतिगुरू अराधा४।
आनि चरन पावो हति बाधा५।
पापनि ते पीड़ति हम होए।
करि करि दोशु हमहुण महुण धोए६ ॥७॥
हे सतिगुर! तुमरे पग पावन।
जबि हम बिखै करहुगे पावन।
ततछिन हम सभि होहिण सुखारे।
आवहु तूरन करुना धारे ॥८॥
सभि तीरथ को लखि भिज़प्राय७।
भए तार संगति संग लाय८।
जहिण जहिण सिज़खन जिस जिस ग्राम।
जात्रा सुनी गुरू सुखधाम९ ॥९॥
तहिण तहिण ते हुइ तार चले हैण।
आनि सतिगुरू संगि मिले हैण।
गुर ग्रिह के संबंधी जेते।
भए तार चलने कहु तेते ॥१०॥सति संगति सिमरनि हरि नामू।
होति कीरतनि धुनि अभिरामू।
गोइंदवाल तागि करि चले।
सने सने मग महिण बहु मिले ॥११॥
इक तो निति गुर दरशन करैण।

१तीरथां विच।
२अुन्हां गंगा आदिकाण विच।
३भाव तीरथ लोकाण दे पापां दा भार नहीण सहारदे।
४सतिगुरू जी दी अराधना कीती (गंगा आदिक तीरथां ने)।
५साडी पीड़ा दूर करो।
६लोकीण धोणदे हन।
७मतलब ।संस:॥ अभिप्राय।
८लैके।
९सुखां दे घर जी दी।

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