Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४२८

तपसी गन की भीर बिसाला।
जहिण कहिण करति घालना घाला१ ॥२४॥
जबि सथान कितहूण नहिण पायो।
सारसुती को तबिहुण धिआयो++।
कहो बिदति हुइ२ मुनि गन संगा।
-का बाणछति तुम कहो निसंगा? - ॥२५॥
तिनहुण जाचना कीनि३ सुजान।
-हे देवी! दिहु बैठनि थान-।
तबि इह सलिता मुनि गन हेत।
हटी कोस दुइ बेग समेत४ ॥२६॥
तिनि बैठन को दीनसि थल है।
बसे मुनी तप कीनसि भल है।
जस तप तपो** घाल बहु घालि।
को गनना कर सकहि बिसाल ॥२७॥
सभि की कथा कहां लग कहैण।
सुनीअहि इक मुनि की जिमि अहै।
अहै पहोए ते त्रै कोस।
इक मंकन मुनि५ हुतो अदोश ॥२८॥
महां बिखम तपु घालो ताहू।
तीर सरसती केर प्रवाहू।
छुधा त्रिखा सहि कठन कराला।बरखा सीत अुशन तन झाला ॥२९॥
बहुत बरख ऐसो तपु साधो।
सरबोतम६ पद लैन अराधो।


१जिथे किथे भाव, इथे हर थावेण घालां घालदे सन।
++किसे तर्हां सरसती दे किनारे होम यज़ग करदिआण विज़दा वधं ते वाच शकती दा नाम
सरसती पिआ, इस लई पड़्हो श्री गुर नानक प्रकाश पूरबारध अधाय १ अंक २ दा भाव।
२(सरसुती ने) प्रगट हो के कहिआ।
३तिंन्हां (मुनीआण ने) मंग कीती।
४प्रवाह संे।
**तप घालं ळ तीसरे सतिगुरू जी आप पसंद नहीण सन करदे, यथा- काइआ साधै अुरध तपु
करै विचहु हअुमै न जाइ॥ इस लई अुपर कहे वाक श्री मुखवाक नहीण हन।
५मंकं नाम दा मुनी।
६सभ तोण अुज़तम।

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