Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६)४२६
५५. ।धरम सिंघ ळ शहीद सिंघ मिलिआ। शमीर॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५६
दोहरा: अगले दिन हित खान के, अुज़तम असन कराइ।
गमनो१ दरशन करन को, शरधालू धरि भाइ ॥१॥
निशानी छंद: कितकि सिज़ख आगे गए, को आवति पाछे।
अुतलावति ही चलि परो, मग एकल आछे।
वहिर गयो चलि कितिक जबि, बाणमे पिखि दाएण।
-को सिज़ख आवै गैल ते, लिअुण संग रलाए ॥२॥
जबि पाछल दिश देखिओ, आवति सिख धीरा।
अभिलाखो -मिलि करि चलैण, सतिगुर के तीरा-।
सने सने चलिबे लगो, हेरति सिख ओरी।
तिह कौतक दिखराइओ, अचरज मति बौरी२ ॥३॥
बिसद बरन के बसत्र बर, पूरब दिखराए।
बहुर पीत पुन शाम करि, निज बेस बनाए।
अरुं बरण पहिरण करे, बड छोट बनता।
नर सम हुइ आयो निकट, पुन फते बुलता ॥४॥
धरम सिंघ थिर हुइ मिलो, धरि प्रेम बिसाला।
शकति वंत पुन गुरू सिख, बोलो तिस काला।
खरो भयो किमिचलति नहि, गमनहि किस थाना?
सुनि भाई बोलो तबै, सतिगुर ढिग जाना ॥५॥
साथ अगारी सभि गयो, तुझ पिखि थिर जोवा।
अपनि प्रसंग बताईए, बड अचरज जोवा।
शकतिवंत अरु सिख गुरनि३, कित ते चलि आयो।
पहुचहुगे किस थल बिखे? सभि देहु बतायो ॥६॥
तबि शहीद सिंघ कहति भा, सुनीए शुभ भाई।
सज़धू रूपा तुव बडे, गुर सेव कमाई।
सिज़ख जानि दीनसि दरस, बिचरति सभि देसा।
रहैण सदा गुर के निकट, गन बली विशेशा ॥७॥
हम शहीद लाखहु फिरैण, बड समरथ धारी।
१भाव धरम सिंघ गिआ। (देखो अज़गे अंक ५ ते ९)।
२भाव अुस सिज़ख ने अचरज कौतक दज़सिआ जिस नाल धरम सिंघ दी मत अचरज रहि गई।
३तूं गुराण दा सिज़ख ते शकतिवंत हैण।