Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४३४
रिदै गान अरजन सुनि लहो।
बासुदेव१ कहि अनिक प्रकारा।
करिवाइसि बडि जंग अखारा ॥७॥
इसि थल थिति रथ क्रिशन पुनीता।
अरजन साथि कही शुभ गीता।
यां ते पावन इह इसथाना।
संगति सगरी करहु शनाना* ॥८॥सुनि सिज़खनि सुख पाइ बिसाला।
कीनि शनान दान तिसि काला।
बहुर थनेसर सतिगुर गए।
भीर संग बहु डेरा कए ॥९॥
खान पान करि निसि बिसरामे।
करनि कीरतन अुठि रहि जामे२।
रागनि की धुनि सुंदर साथ।
अुपजति प्रेम प्रमेशुर नाथ ॥१०॥
भयो प्रकाश प्राति को जाना।
कीन तीरथनि बिखै शनाना।
सारसुती सलिता जल पावन।
गयो प्रवाह पुंन बहु थावन ॥११॥
तीरथ ब्रिंद बिखै बहि बारी३।
पावन करी भूमिका सारी।
तिसि महिण करि शनान हरखाए।
जपि प्रभु दान दीनि समुदाए ॥१२॥
सभि तीरथ अरु नगर मझारा।
सुनि सुनि सुधि नर करहिण अुचारा+।
श्री नानक ते तीसर थान।
बैठे गादी गुरू महान ॥१३॥
१क्रिशन जी ने।
*इसे अंसू दे आद विच पुंन रूप तीरथ गुरू कवी जी आप कहि आए हन, हुण सिज़ख ळ किसे
होर पावन करन वाले तीरथ दी लोड़ नहीण, गुरबाणी तां इस अुपदेश नाल भरी पई है।
२पहिर (रात) रही तोण।
३वगदा है जल।
+पा:-करहिण विचारा।