Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुरप्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४३५
सो तीरथ करिबे कहु आयहु।
महां जोति जिन जग बिदतायहु।
संनासी ब्रहमचारी ब्रिंद।
पंडित बिज़दा बिखै बिलद ॥१४॥
बैरागी आदिक बहु बेखनि।
चलि आए सतिगुर कहु देखनि।
नर ग्रिहसथी गुर के सिख केई।
गुरू दरश हित आए तेई ॥१५॥
ले करि केतिक शुभ पकवान।
किनहूं सुमन सु लीनसि पान।
को फल मूल लाइबो करैण।
चारहुण बरन भेट को धरैण ॥१६॥
दरसहिण सतिगुर करि करि नमो।
भई भीर भारी तिह समो।
देखति सरब प्रताप अुचेरे।
धरो सरूप जनु गान बडेरे१ ॥१७॥
पंडित अरु संनासी ब्रिंदा।
ढिगि बैठे हंकार बिलदा।
स्री सतिगुर को दरशन करो।
करि बंदन को प्रशन अुचरो ॥१८॥
श्री नानक जो कीनसि बानी।
तिस को कारन परहि न जानी२।
आगै हुते सु बेद पुरान।
पठहिण सुनहिण बिसतरे जहान३ ॥१९॥
सो कज़लान करति जज़गासी।
चलहिण कहे पर, काटहिण फासी४।मुकति पंथ को नीकी भांति।
बरनो अुपदेश जु बखात* ॥२०॥
१मानो गिआन ते बग़ुरग सरीर धारन कीता है।
२नहीण जाणिआ जाणदा।
३पड़्हना सुणना फैलिआ जहान विच।
४जे (अुन्हां दे) कहे पर चलदे सी अुस दी फांसी कटी जाणदी सी।
*पा:-बरनो है अुपदेश बखात।