Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५)४३३

४६. ।गुरमत दे साधनां दा वरणन॥
४५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>४७
दोहरा: ।गुरू:-॥
ऐसे सतिगुर+ पास ते
लहति जीव कज़लान।
जस देखति अधिकारि जन
तस अुपदेश बखान१ ॥१॥
चौपई: खट गुण२++ सहति गुरू भगवान।
जथा बिशनु के महद महान३।
यां ते निज शकती ते लखैण४।
गुन अवगुन जज़गासी बिखै ॥२॥
जथा जराह५ होति मतिवंता।
घाव मझार बिकार लहंता६।
तौ मेलन अअुखध नहि लावै७।
मेले ते नसूर रहि जावै ॥३॥
टूटो असथी८ आदि बिकार।
तिस को पूरब लेति निकार।
पुनह घाव मेलति सुख देति।
काच जराह होति दुख हेत९ ॥४॥
इम हमरे सतिगुर गुनवंते।
सिख को नीकी बिधि परखंते।

+भाई दइआ सिंघ जी पिछले अंसू विज़च श्री गुरू गोबिंद सिंघ ते दसां सतिगुराण ळ हर गुर
अवतार करके गुरू रूप वरणन करदे आए हनते हुण बी अुहो विशय जारी है।
१गुरू जी देखदे हन जन दा जैसा अधिकार तैसा अुपदेश कहिदे हन।
२छे गुण।
++खटगुण-देखो इसे रुत दा अंसू ४९ अंक २४।
३जिवेण विशळ विच छे गुण वडे हन, पर (जीवाण विच अलप हुंदे हन)।
४यां ते जाण लैणदे हन (गुरू जी) आपणी शकती नाल।
५नाई, ग़मां दी चीर फाड़ करन वाला।
६ग़खम विच विगाड़ (जद) देखदा है।
७तद (ग़खम) मेलन वाली दवाई नहीण लाअुणदा।
पा:-कसूर।
८टुज़टी हज़डी।
९दुज़ख दा कारन बण जाणदा है।
पा:-देति।
पा:-बुधिवंते।

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