Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४३४
५४. ।श्री अंम्रितसर नगर वसाइआ॥
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दोहरा: स्री हरिमंदर को बहुर,
कारीगरन लगाइ।
करति अुसारन कअु भले१,
चहुदिश दर रखवाइ ॥१॥
चौपई: सिख प्रेमी बहु कार कमाइ।
चूनो पीसहि प्रेम लगाइ।
बहु सूखम बहु डाल मसाले।
सिर अुठाइ करि लाइ अुताले ॥२॥
ब्रिंद ईणटका सीस अुठावैण।
कारीगरनि निकट पहुचावै।
नीके घर घर धरहि सुधार।
करहि निताप्रति मंदर कार ॥३॥
श्री सतिगुर की आइसु पाइ।
नहि काशट किस थाइ लगाइ।
चूने संग ईटका जरैण।
भित ठांढी गाढी अति करैण२ ॥४॥
चहुदिश खरी३ करी बहु खरी।
करदम संग न ईणटै धरी।
कालबूत४ संग करि करि जोर।
चारहु दर मेले दुहु ओर५ ॥५॥
चिन चिन अूपर कीन अुतंग।
मेली छात सु चूने संग।महिमा के गुर शबद बनावैण।
हरखहि संगति जबहि सुनावैण ॥६॥
सुधा सरोवर अरु गुरु धामू६।
१भाव चंगी तर्हां अुसारदे हन।
२कंधां (बड़ीआण) मग़बूत खड़ीआण करदे हन।
३खड़ी कीती चंगी।
४डाट बनाअुण वेले जो आसरा हेठ देईदा ते फेर कज़ढ लईदा है।
५दुहां पासिआण तोण मेले, भाव डाट लगाई।
६गुरू के महल।