Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ४३७

५५. ।गअू दे अलकार विच धरती॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>५६
दोहरा: बहि सलिता ऐरावती,
तिस ते अुरे कितेक।
बिचरति हेत शिकार के,
श्री गुरु जलधि बिबेक ॥१॥
चौपई: देखी जबि अुदान महान।
मिलो एक मानव तहि आनि।
हिंदू हुतो हेरि गुर पूरन।
चरन कमल बंदे तिन तूरन ॥२॥
पुन कर जोरि बताइसि बाति।निकट दुशट गो१ करते घाति।
तिन के बस नहि आवति सोई।
करति ओज को२ मैण तहि जोई ॥३॥
सुनि सतिगुरु सो आगे करो।
हय धवाइ चाले रिसि धरो।
हुते निकट ही जाइ निहारे।
खड़ग निकासो ततछिन मारे ॥४॥
भाज चले कुछ घेरि प्रहारे।
खंड खंड करि धर पर डारे।
ग्राम समीपि हुतो तिन केरा।
सुनो रौर धाए तिस बेरा ॥५॥
चांप बंदूक संभारित आए।
मरे देखि करि समुख चलाए।
सभि सैना गुरु की तबि धाई।
तजी तुफंग शलख समुदाई ॥६॥
गुलकाण लगी मरे इक बारी।
बाजे जियति त्रास को धारी।
ग्राम छापरी को गन घाले।
बसहि जमन१ जे अघी बिसाले ॥७॥


१गअू दा।
२बल करदे हन (अुसदे काबू करन ळ)।

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