Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४४०

को कारन भा? बरनन करियहि।
सभि सिज़खनि की इज़छा पुरियहि ॥४५॥
भूत भविज़खतीनहूं काल।
रावरि को सभि गात बिसाल।
श्री गुर अमरदास सुखरास।
निज दासन की पूरति आस ॥४६॥
कहिन लगे इतिहास पुरातनि*।
जिम कीनो श्री प्रभू सनातन।
संगति सुनहि सु कथा नरायन।
जिस ते होवति पाप पलायन ॥४७॥
इति श्री गुरु प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे कुरछेतर आगमन श्री
अमर प्रसंग बरनन नाम शट चज़तारिंसती अंसू ॥४६॥


*धरती दा इक नाम मेदनी है। मेदा नाम मिज़झ दा है। पुराण ने मेदनी दे बणन दा कारण (मेदा
=) मिज़झ दज़सिआ है, ते दो राखशां दे मारे जाण ते अुहनां तोण धरती बणन दी कथा लिखी है। सो
कथा पुराण विचोण वाची होई कवि जी अज़गे देण लगे हन। अज़गे आअुण वाली सारी कहांी ळ गुरू
जी वलोण नहीण समझंा चाहीए। अुहनां दी बाणी दज़सदी है कि ऐसीआण कहांीआण पर सतिगुराण दा
विशवाश नहीण सी ते ना आप ऐसे अुपदेश करदे सन। चौवीस अवतार नामे रचना विच लिखिआ
है कि बिशनु पंज हग़ार वर्हे मधु कैटभ नाल लड़दा जिज़त ना सकिआ तां अकाल पुरख ने
सहाइता कीती तां फते होई। ओथे विशळ वज़खरा है ते अकाल पुरख वज़खराहै जो सरब शिरोमणी
है। विशळ ते अकाल पुरख दा कवी जी ने एथे फरक नहीण विखाइआ। इस प्रसंग विच कविता दे
नुकते तोण बीररस दा वरणन सुहणा है।

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