Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ४३८
४९. ।श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी दी बीड़॥
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दोहरा: भयो ग्रिंथ साहिब रुचिर, भोग पाइबे हेत।
अनिक भांति अुतसाह की, तारी करी सुचेत ॥१॥
तोटक छंद: बहु कीनि तिहावल मेलि भयो।
सभि संगति श्रौन सुनाइ दयो।
अबि ग्रंथ सपूरन होइ गयो।
दरसैण सभि आनि अुछाह कयो ॥२॥
नर नारि अनद बिलद करे।
सर राम जहां तहि आन थिरे।
लघु दुंदभि बाजि१ नफीरन सोण।
बड होति कुलाहल भीरनि सोण ॥३॥
अुतसाहति संगति आवति है।बहु भांति प्रसादनि लावति है।
फल फूलनि को निज हाथ धरे।
शुभि चीर शरीर सभे पहिरे ॥४॥
लखि श्री गुर एकल बैठि रहैण।
तबि आइ कली२ इम बाक कहै।
करि कीरति को कर जोरि रहो।
गुर जी अवतार अुदार लहो ॥५॥
अबि मोहि समोण जग मोण बरतो।
गन औगुन मानव के करतो३।
सठ क्रर कलूखन प्रीत महां४।
शुभ मारग ताग जहां रु कहां ॥६॥
तुम ग्रिंथै रचो गुन पूरन है।
अुर ब्रिंद बिकारनि चूरन है।
जग मैण मग श्रेय दिखावनि को।
सतिनाम मुकंद जपावनि को ॥७॥
सति संगति को बिसतार महां।
१वज़जी।
२कलजुग ने।
३मनुखां दे बहुते पाप करदिआण।
४मूरखां ते निरदईआण दी पापां विच प्रीती बहुत है।