Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५८

।संस: क्रिति, धातू है = कीरति करनी॥। (अ) हित दा = प्रेम दाती। कित
दा = अरोगता दी दाती। कितकी = अरोगता करन वाली। ।संस: कित-धातू है =
चकितसा करनी॥।
हंत = अहंता। जरी = साड़न वाली। सड़ जाणदी है।
सुधिदा = सुज़धता दाती, सफाई देण वाली।
अुर = दिल दी। जुर = ताप, मुराद त्रै तापां तोण है।
सुख पुंज जरी = सुखां दे समूह तोण बणिआण ग़रीबादला है ।फा: ग़री = सोने
दीआण ताराण तोण बणी शै, ग़री बादला॥।
(अ) जरी = जड़ी = जड़ी बूटी, भाव औशधी।
सुख पुंज जरी = सारे सुखां दी दवाई है।
मथा = रिड़कके। घ्रित = घिअु। चारु = सुंदर।
अजरा = जो कदे कुमलावे भाव विगड़े नहीण। सदा इक रस रहे।
न जरी = जिस ळ बुढापा ना आवे। (अ) अजर ळ जर (लैंा सिखालं
वाली)। (ॲ) इह कथा अजर वसतू नहीण,जरी जाण वाली है, अरथात इस ळ
सुणके श्रोता इसळ आपणे अंदर समझेगा ते क्रितारथ होवेगा। (स) इसळ जरनगे
अजर ळ जर लैं दे सुभाव वाले (प्रेमी)। (ह) अजरा = जंगल तोण रहित। नजरी =
नजरोण लघिआ, परखिआ होइआ। (क) अजर = मुज़ल। अनजरी = बेकीमत
अमोलक। ।अ: अजर = अुजरत, कीमत। ॥
चारु = सुंदर। (अ) गहिंा। अनदक चारु जराअु जरी = अनददाइक
गहिंे दी जड़त जड़ी है।
जराअु = जड़त। जरी = जड़ी होई है।
अरथ: (सतिगुराण दी कथा) चिज़त ळ टिकाअु देण वाली, नित धन (नाम) दी दाती
है, कीरतन भगती दी दाती है (ते जिसदे) सुणन नाल हअुमैण सड़ जाणदी है।
सतिगुराण (दे चरनां विच) शरधा (अते) रिदे ळ सुज़धता देण वाली है,
(त्रैआण) तापां दे हरन वाली सारे सुखां दी औखधी है। इस (सतिगुराण दी)
सुंदर कथा (विच) सारा तज़त रिड़कके (लै लीता गिआ है) जिवेण घिअु
(कज़ढ) लईदा (है), इह (कथा है) इक रस रहिं वाली ते कदे बुज़ढी नां
होण वाली* (श्री गुरू) गोबिंद सिंघ मुकती दाते दे सारे गुणां (रूपी रतनां)
दे (मानो) आनददाइक गहिंे दी जड़त बणी है।
भाव:इस विच कवि जी ने अुस कथा दे गुण दज़से हन जो ओह लिखदे आए ते
अज़गोण लिखंगे। दस गुरू साहिब जी हन ते दस ही गुण आप ने कथा दे एथे
कथन कीते हन। अज़ठ गुण पहिलीआण दो तुकाण विच हन, नावाण तीसरी विच


*घ्रित दा रूपक-अजरा नजरी = दे अरथां ळ बंन्ह देणदा है। दुज़ध दहीण मज़खं छेती खराब हुंदे
हन, पर घिअु खराब नहीण हुंदा, तिवेण इह कथा जरा (बुढेपे) ळ प्रापत नहीण हुंदी। दूसरे,
घिअु ऐवेण खाधा पचदा घज़ट है, पर इह कथा (अजरा+न =) अजर नहीण, ना पचंे वाली नहीण,
सगोण जरी-पचं वाली है, भाव सभ ळ सुखावेगी।

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