Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४४५
इम कहि दोनो ओज सज़भारा।
तिशट तिशट१ मुख अूच अुचारा ॥२२॥
भुजंग प्रयात छंद: सुनी श्री प्रभू, श्रोन मैण अूच बानी।भरे ओतसाहं, भए सावधानी।
कहो मैण खरो, आप आवो सु नेरे।
दिअूण दुंद२ जुज़धं, सु क्रज़धं३ घनेरे ॥२३॥
मिले आप मांही, जगंनाथ दैतं४।
भरे बेग भारे, चहैण होहि जैतं।
बिरुज़धे५ सु क्रज़धे, मचो सुज़ध जुज़धं।
महां द्रज़प मज़धं, करैण बज़ध अुज़धं६ ॥२४॥
गहे बाह दोअू, करे ओज पेलैण७।
अरीले हठीले, मुछाले८ धकेलैण।
भिड़ैण भेड़ भारे, भए भीम भेखं।
चपेटैण दपेटैण, लपेटैण अशें९ ॥२५॥
अटा अज़ट१० हासैण, सटा पज़ट११ जुज़टैण।
लटा पज़ट१२ होवैण, धटा धज़ट१३ कुज़टैण।
झटा पज़ट झटकैण, पटज़कैण पलटैण१४।
कटा कज़ट ओठ, अटज़कैण न लटैण१५ ॥२६॥
दुअू दैणत दौरे, दया सिंधु अूपै१६।
१खड़ा हो, खड़ा हो।
२दोहां ळ।
३क्रोधवान होके।
४विशळ ते दैणत।
५रुके।
६अुज़ची।
७धज़कदे हन।
८अड़न वाले, हठ करन वाले, वज़डीआण मुज़छां वाले।
९खिझके दबाए (फिर) सारे लपटे।
१०ठाह ठाह।
११छेती छेती।
१२जज़फो जज़फी।
१३धड़ा धड़।
१४झटकके पटकाके पलटदे हन।
१५कट कट के होठ अटकदे हन हटदे नहीण(लटना = थज़कके डिग पैंा)।
१६अुपर।