Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ४४३

६०. ।कीरतपुर बा दे दरशन। अनदपुर ळ कूच॥
५९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>६१
दोहरा: करि मुकाम१ निज सतिगुरू, पंचांम्रित करिवाइ।
चले बिलोकन बा को सगरे संग लवाइ ॥१॥
चौपई: भए प्रवेश अशेश२ निहारा।
आरू अरु अमरूद, अनारा।
खरे रसाल बिसाल अुचेरे।
फले फासले फल बहुतेरे ॥२॥
बदरी तरु कदलीन३ बगीचे।
बारि बारि बारी बर सीणचे४।राइबेल, चंपक, चंबेली।
फैली महिकति गंधि सुहेली ॥३॥
खिरो केवरा, हार शिंगार५।
सेव मालती, गन गुलग़ार।
गेणदा, कलगा६, ब्रिंद बधूप७।
खिरनी, जामन खरी अनूप ॥४॥
निबू, नौरंगी, अंगूर।
संगतरे सुंदर रस पूर।
कठल८ बढल९, बट१०, पीपर खरे।
पंकति करी सुहावति खरे ॥५॥
रचे सथंडल११ रौस१२ बिसाला।
निरमल नीर सभिनि महि चाला।


१डेरा करके।
२सारा (बा)।
३केलिआण दे।
४वार वार श्रेशट जल नाल सिंजे होए।
५खुशबूदार फुलां दा इक बूटा जिस दे सुज़के फुज़लां विचोण बसंती रंग निकलदा है।
६कुकड़ दी कलगी वरगे फुल वाला पेड़, गनार दी इक किसम जिस दे बीज भुंनके वरतां ळ
मुरंडे बणाअुणदे हन।
७गुल दुपहिरी।
८कटहर। बड़ा भारी फल हुंदा है, कज़चा रिंन्हदे, पज़के ऐवेण खांदे हन।
९ढेअू, कचे दा आचार पैणदा है, पज़के ळ ऐवेण खांदे हन।
१०बोहड़।
११थड़े।
१२बागी सड़काण ।फा: रवश॥

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