Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ४४२

४७. ।ब्रहम गान अुपदेश॥
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>४८
दोहरा: +चारहु साधन पाइ कै
सतिगुर शरणि सिधाइ।
परखैण महां सुजान१ तबि
ब्रहम बिदिआ सिखराइ ॥१॥
चौपई: चार प्रकार अहै ब्रहम गान।
श्रवं, मन, निधासन जान।
चौथे साखात गुर कहैण।
जिस को पाइ न जग महि बहै२ ॥२॥
।श्रवन:-॥
प्रथम स्रवं खट लिग प्रकार३।
४जिस ते चेतन अदुतिमझार।
तातपरय को निशचै होइ।
श्री सतिगुरू श्रवं कहि सोइ४ ॥३॥
इक अुपकरम अरु अुप संहार१।
दूजे को अभास२ अुचार।
श्रवं अपूरबता२ लखितीन।
फल४ पुन अरथबाद५ को चीन ॥४॥
अुपपति६ खशटम करहि अुचारन।
अबि इन के करि अरथ बिचारन।
५अरथ जु आदि ग्रंथ महि धरना।
तिस को प्रति पादन बहु करना ॥५॥
तिसी अरथ महि होहि समापति।
अुपक्रम अुपसंहार जान चित५।


+हुण फेर ब्रहम गान दा विशा वरणन करनगे ते गुरबाणी विचोण अुसदे पदारथ दिखालंगे।
१परखदे हन (गुरू जी) सिज़ख ळ महां सुजान।
२रुड़्हदा नहीण।
३पहिलां श्रवं है जिस दे खट लिग (चिंन्ह) हन, अुसदा प्रकार कहिदे हन:-भाव ब्रहम
प्रतिपादन करन वाले ग्रंथ दा जिस ळ सुणना है अुसदे छे चिंन्ह हन।
४भाव जिन्हां खटलिगां करके अदुती चेतन दे विच तातपरय दा निशचा हो जाए अुस ळ सतिगुर
श्रवं कहिदे हन।
५जो अरथ भाव ग्रंथ दे आदि विच रखंा अुसे दा प्रतिपादन करदे होए अंत अुसे अरथ विच
समापत करना, इस दा नाअुणअुपक्रम अुपसंहार चित विच जाणो।

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