Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११)४४४
६१. ।जरासंध दी कथा॥
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दोहरा: रतन जटति सिर मुकट को,
भूपति धरो अुतार।
जूड़ा केसन को करो,
द्रिड़्ह पगीआ को धारि ॥१॥
चौपई: कट कहु कसि कै होयो तार।
गरजो भैरव शबद अुदार१*।
भीम सैन इत भयो सुचेत।
ठोके भुजादंड रण हेतु ॥२॥
क्रोध भरे दोनहु बलवान।
भिरे परसपर महां भयान।
प्रथम प्रहार मुशट के करे।
अुठो शबद जिम लोहा घरे ॥३॥
मनो ब्रिखभ अति बली भिरे हैण।
जिम कुंचर करि कोप लरे हैण।
लपट गए अंगनि सोण अंग।
पाइ अरोपहि बल के संग ॥४॥
कबै भीम को भूप धकावै।
कबै भूप को भीम लिजावै।
कबहु सीस सीस पर मारैण।
घोर नाद को दुअू अुचारैण ॥५॥
सुनि करि लोग नगर के सारे।
चिंतातुर त्रासति अुर भारे।
सुभट पुरख बालिक अर जान।
ब्रिध नर आइनारि तिस थान ॥६॥
अंदर मंदरि पर चढि करि कै।
चिंतातुर भै धरहि निहरि कै।
महां भीर चारहु दिशि मांहि।
देखहि संघर कितिक अुमाहि ॥७॥
१बड़ा भानक शबद करके।
*पा:-अुचार।