Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ४५१५७. ।धीरमल जनम। बाबा अटल खेड॥
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दोहरा: श्री सतिगुरु बड पुज़त्र को, निकटि बुलाइ बिठाइ।
होयहु तरुन बिसाल बलि, अस आइसु फुरमाइ ॥१॥
चौपई: श्री करतार पुरा निज थान।
हमरे पित को रुचिति महान।
भा चिरकालि न गमने तहां।
प्रजा बसति है अपनी जहां ॥२॥
तहां समीप संगतां ब्रिंद।
दिवस पुरब के चहति बिलद।
दरशन करनि अुपाइन दैबे।
रिदे कामना बाणछति लैबे ॥३॥
तुम सभारजा१ बसीअहि जाइ।
कबि हम मिलहि, कबहि तुम आइ।
श्री गुरदिज़ते सुनि पित बाति।
मानी सिर धरि करि मुद गाति२ ॥४॥
माता को बिधि सकल सुनाई।
कहि दासनि तारी करिवाई।
प्रथम बिमातनि को३ करि नमो।
मिलि दमोदरी सोण तिस समो ॥५॥
सहत सनूखा सुत को हेरे।
आशिख देति दलार घनेरे।
शुभ सिज़खा दोनहु कहु कही।
रिदे बिछुरिबो चाहति नहीण ॥६॥
तअू पिता कीआइसु जानि।
श्री हरिमंदर बंदन ठानि।
श्री हरिगोबिंद को करि नमो।
मारग चलति भए तिह समोण ॥७॥
इक निस को बिताइ मग मांही।
१सहित इसत्री दे।
२भाव प्रफुज़लत हो के। भाव बहुती खुशी तोण है किअुणकि बहुती खुशी वेले सरीर प्रफुज़लत हुंदा है।
३मत्रेईआण मातावाण ळ।