Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ५७
पावक पावति छार कइआ।
चीरति चीर करति लघु लघु को
अचरज सभि के रिदे भइआ ॥४०॥
सुनति बचन अरु क्रिआ बिलोकति
अुर संसै जुति कौल भइआ।
बिज़प्रै तुक को पठि पठि श्री मुखपारि पारि पट जार दइआ।
सगलो फूक चुके नीलांबर
तनक तिसी ते राख लइआ।
जमधर संग बंधि करि सोअू
पंथ बेख हित सभि न छइआ१ ॥४१॥
चौपई: कहति कौल मम अुर संदेहू।
बिज़प्रै पठी आप तुक एहू।
श्री नानक को बाक अमेट।
कोई न मोरहि महां सहेट२+ ॥४२॥
बिज़प्रै पठे चारहूं बरण३।
श्री हरि राइ सुने जबि करण।
रामराइ को तागो ऐसे।
निज मुख लगन न दीनसि कैसे ॥४३॥
नहि बैठाइसि गुरता गादी।
श्री हरिक्रिशन भए अहिलादी।
तुम ने सगरी तुक अुलटाई।
इम अनुचित हम सहि न सकाई ॥४४॥
सुनि करि क्रिपा निधान बखाना।
रामराइ कहिबो जग जाना।
करन तुरकड़े हेतु खुशामद।
हरखावन जिस ते बहु आमद ॥४५॥
सतिगुर की तुक तिन अुलटाई।
१सारा (कपड़ा) नाश नां कीता।
२औखी गज़ल, अमुड़ गज़ल।
+पा:-समेट, अमेट।
३ौचार अज़खर।