Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४५७
एक दिवस छाया के साथ।
जम लरि परो बहिस किसि गाथ ॥२३॥
अधिक क्रोधदोइन के होवा।
रकत नेत्र आपस महिण जोवा।
गिरा कठोर बिसाल अुचारी।
तबि जम ने निज लात अुभारी ॥२४॥
अुदतो१ करनि प्रहार सु छाया।
इनि देखति इम स्राप अलाया।
-चरन अुभारो मो कहु जोइ।
चहैण प्रहार करनि को सोइ ॥२५॥
अब गरि जाहु२ न आछो रहै।
करि अपराध अुचित दुख सहै-।
छाया स्राप दयो इम जबै।
जम को चरन गयो गर तबै ॥२६॥
सुधि सूरज ने जबिहूं सुनी।
रिदै बिखै बहु बिधि सोण गुनी।
-इहु सुत माता३ लखीयहि कैसे।
घोर करम कीनसि जुग ऐसे- ॥२७॥
सहत संदेह सूर जबि होवा।
आयो छाया की दिशि जोवा।
-साच बतावहु है तूं कौन?
सुत सोण इम को करि हहि भौन- ॥२८॥
दिनपति जबहि त्रास अुपजायहु।
छाया साचु ब्रितांत बतायहु।
तवु दारा गमनी पित ओर।
मुझ को गई राखि इस ठौर ॥२९॥
आदि सनिशचर संतति मेरी।
मनु, जमु, जमना, है तिस केरी।
चिरंकाल की ताग पलाई।
१तिआर होइआ छाइआ ळ लतमारन वासते।
२गल जाएगा।
३पुज़त्र दी मां।