Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६०
ततकाल सा = छेती होण वाला। गान तत कालसा = ओह गान जो तुरत हो
जावे। कवी जी दा भाव, जिसळ भजन रूपी फुल पै रिहा है, अुसळ गान फल छेती
पैणदा है।
पर मत = पराया मत = ओह मत जो परमेशर ळ ओपरा कर देवे।
(अ) ओह मत जो विदेश ते ओपरे लोकाण तोण आया होवे।
कालसा = काल वरगा, मौत समान। खल = दुशट।
दालसा = दलन वाला।
प्रताप = तेज। प्रताप रिपु = वैरीआण दे तेज ळ (अ) प्र = प्रजा (प्रजा दा
संखेप)। ताप = कलेश। प्रताप रिपु = प्रजा ळ कलेश देण वाले वैरीआण ळ।
घालसा =घालं वाला, नाश करता। कलप तरु = कलप ब्रिज़छ।
अरथ: (खालसा रूपी कलप ब्रिज़छ दी अुतपती आदि दा रूपक बंन्हदे हन:- ) जगत
दे मालक स्री गुरू (गोबिंद सिंघ जी) ळ जगत (रूपी) घर विच हिंदीआण ळ
सदा प्रफुज़लत वसाअुण दी लालसा (सफुरण) होई, (इस फुरने तोण)
सूरमता (दा बीज बणिआण, इस बीज तोण) महां जुज़ध (रूपी) अंगूर फुज़टिआ
(जो) अंम्रत दे देण नाल छेती ही छाल (समेत पेड़ हो) वधिआ, (इस ळ)
स्रश दैवीगुण (रूपी) पज़ते पए ते दलां समेत राजे डाल (लगे), बंदगी दा
इस ळ फुज़ल ते शीघर प्रापत होण वाला गान (इस ळ) फल (पिआ), इह
खालसा (रूपी) कलप ब्रिज़छ (हुण इन्हां गुणां वाला लहि लहि कर रिहा है),
पराए (वाहिगुरू विमुख) मतां ळ मौत वाणू है, दलिद्र ते दुशटां ळ नाश
करन वाला है, (ते प्रजा दे) वैरीआण दे प्रताप ळ नशट करन वाला है।
होर अरथ: जगत दे मालक श्री गुरू (गोबिंद सिंघ जी) ळ जगत घर दे वेहड़े
(हिंदुसतान) विच (खालसा कलप ब्रिज़छ) लाअुण दी इज़छा होई।
परंतू इह अरथ सारव भौमिक खालसा धरम ळ हिंदुसतान विचमहिदूद करदा है।
।खालिसे दे तेज दा रूपक॥
कबिज़त: पाड़्हे से पठान होति ससे सूबे अूकसे ना
काबली कुरंग आगै ठहिर सकै नहीण।
रोझ रजपूत है झंखाड़ से मलेछ बहु
बिचरे बराह जोण बलोच को जकै नहीण।
मुल मतंग मार गाजति संतोख सिंघ
सज़यद सयाल है समुख सो तकै नहीण।
तुरकन तेज तामा तौ लग तरो ई तरै
खालसा सरूप सिंघ जौ लग छकै नहीण ॥४२॥
पाड़्हे = इक प्रकार दा चिज़टे चिज़त्राण वाला हिरन।
ससे = सहिआ। संस: शशिन