Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ४६२
४९. ।ब्रहम गिआन अुपदेश॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>५०
दोहरा: बिशै प्रमांनि को भयो,
कहो अबिशै सरूप१।
इह संसै बूझनि करो२, सुनि कै गाथ अनूप ॥१॥
चौपई: शंका करी खालसे जबै।
दया सिंघ बोलो शुभ तबै।
विधि मुख सिख जनाइबे हेत।
कहो ब्रहम को बिशै संकेत३ ॥२॥
४नेति नेति करि निखिध पछान।
तौ प्रमान को बिशय न जान४।
जिम नहि बिशै सुनहु दे श्रौन।
-अगम अगोचर कहीऐ तौन५ ॥३॥
इंद्रीते प्रतज़छ नहि सोइ।
प्रतज़छ प्रमान अबिशयै होइ६।
चिंन्ह ब्रहम कै कोइ न अहै।
जथा धूम ते पावक लहैण ॥४॥
नहि अनुमान बिशै७ इम जानि।
अज़दै एक आतमा मानि।
चेतन सम चेतन नहि कोइ८।
बिशै अुपमान न यां ते होइ९ ॥५॥
कारण कारज भेद न अहैण१०।
१(ब्रहमातमा दे) सरूप ळ (तुसां पिछे प्रमां दे) अविशय किहा है (ते हुण जो कुझ तुसां किहा है
अुस नाल अुह) प्रमां दा विशय हो गिआ।
२(खालसे ने) पुज़छिआ।
३विधी पज़ख दुआरा सिज़ख ळ जनावं वासते (प्रमां दा) संकेत करके ब्रहम ळ (अुहनां दा) विशय
किहा है।
४निखेधी पज़ख दुआरा नेती नेती करके जे पछां कराईए तां (ब्रहमातमा ळ) प्रमां दा विशय ना
जाणो।
५तिस (ब्रहम) ळ।
६इस करके प्रतज़छ प्रमान दा अविशय हो गिआ।
७अनुमान (प्रमां) दा विशय नहीण है।
८अुस चेतन दे तुज़ल कोई होर चेतन नहीण है।
९इस करके अुपमान दा विशा नहीण है।
१०अुस ब्रहम विच कारण कारज (आदि) भेद नहीण हन।