Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ४६६
५२. ।भाई पुरीआ, चूहड़ ते भाई पैड़ा, दुरगा प्रति अुपदेश॥५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५३
दोहरा: पुरीआ चूहड़ चौधरी,
हुते ग्राम के दोइ।
श्री अरजन को सुजसु सुनि,
काणखी गति के होइ ॥१॥
चौपई: शरधा धरि आए गुरदारे।
कर जोरे शुभ दरसु निहारे।
पद अरबिंद बंदना करी।
जथा शकति भेट सु ढिग धरी ॥२॥
बैठे आगा पाइ अगारी।
हित बूझन अरदास अुचारी।
सुनहु गरीब निवाज क्रिपाला।
बितो प्रतीखति हम चिरकाला ॥३॥
आवनि को चाहति चित रहे।
कारज अनिक प्रकारनि अहे।
हम पर अबि करुना तुम होई।
शरन परे शरधा धरि दोई ॥४॥
ग्राम चौधरता कार जु पावैण।
तिन महि हम बहु झूठ कमावैण।
श्री गुर जी! किम होइ अुधारा।
सुनो चहति अुपदेश तुमारा ॥५॥
श्री अरजन सुनि कै सिख अरग़िनि१।
क्रिपा करी जिन को जसु अरजुन२।
श्री मुख ते शुभ बाक अुचारा।
तागहु झूठ, क्रोध, अहंकारा ॥६॥
झूठ समान पाप नहि कोई।
नहीण झूठ ते शुभ गति होई।
कलि को कूरकहैण अगवानी३।
१बेनतीआण।
२अुज़जल।
३कलजुग विखे झूठ आगू कहीदा है।