Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ४७०
६४. ।नुरंगे दी होर सखती॥
६३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>६५
दोहरा: चिंतातुर अवनी पिखति*,
नेत्रनि ते जल जाति।नसमकार हित करनि के,
चलि आए ढिग तात१ ॥१॥
चौपई: बैठे निकटि सपूत प्रबीना।
देखि मात दिशि बूझनि कीना।
अबि लौ आज न मज़जन करो।
नेम शबद को पाठ न ररो२? ॥२॥
का चितवति चिंता चित मांही।
मो संग भेद करहु किम नांही३?
श्री गुजरी दुह सुपन सुनाए।
हे नदन! निस महि मुझ आए ॥३॥
पिता तुमारे अपने कर ते।
पैसे पंच नालीअर धरते।
अरपन करते४ तुमहु अगारी।
इम सुपनो आयो इक बारी ॥४॥
पुन सतिगुर को धर सिर नारो।
पिखि सुपने महि भा दुख भारो।
तबि की चिंता मैण कर रही।
मन थिरता को पावति नहीण ॥५॥
पठहु सिज़ख लघु देहु तुरंग५।
आनहि सुधि को तूरन संग।
पहुचहि पुरि संगति के मांहि।
डेरा करहि निकटि पुन जाहि ॥६॥
करि दरशन ततछिन हटि आवै।
*पा:-जननी लखी।
१भाव श्री गोबिंद सिज़घ जी माता जी पास नमसकार करन आए जो चिंतातुर सी।
२नितनेम दी बाणी दा पाठ बी नहीण कीता?
३किअुण नहीण कहिदे।४कर दिज़ते हन।
५छेती घोड़ा देके।