Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ४७२
५०. ।गुरमत दा गान निरणै॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>५१
दोहरा: ।इशनान:-॥
सवा जाम, कै जामनिस,
खट घटिका कै चार।
सौच शनाने सिज़ख तनु,
सरिता सरु बर बार१ ॥१॥
चौपई: ।नाम:-॥
सज़तिनाम सिमरन को लागै।
पाछल राति निता प्रति जागै।
गुरबाणी पठि अरथ बिचारै।
गुन संग्रह, अवगुन गन टारै२ ॥२॥
दिनस चढे कारज जो करै।
सज़तिनाम मुखि ते अुर धरै।
निस दिन महि नहि कबहुं बिसारै।
जिअुण लोभी धन महि मन धारै* ॥३॥
लिव लग जाइ पके अभिआसा।
सने सने तन हंता नासा।
श्रवं गान महि पुन लग जाइ।
सचिदानद ब्रहम जिस भाइ३ ॥४॥
कर निरनै मन दे करि सुने।
तजहि न तबि सिमरन नित भने।
मनन करहि पुन जुगति अनेक।
ब्रहम आतमा केर बिबेक ॥५॥
तबि भी नित सिमरहि सतिनाम।
१नदी या सरोवर दे सज़छ जल विच।
२सारे अवगुण तागे।
*श्री गुरू रामदास जी दे हुकम दी इह विआखिआ है। हुकम इस प्रकार है, यथा- गुर सतिगुर
का जो सिख अखाए सु भलके अुठि हरिनामु धिआवै ॥ अुदमु करे भलके परभाती इसनानु करे
अंम्रितसरि नावै ॥फिरि चड़ै दिवसु गुरबाणी गावै बहदिआ अुठदिआ हरि नामु धिआवै ॥ जो
सासि गिरास धिआए मेरा हरि हरि सो गुर सिखु गुरू मनि भावै ॥ जिसनो दइआलु होवै मेरा
सुआमी तिसु गुर सिखु गुरू अुपदेसु सुणावै ॥ जनु नानकु धूड़ि मंगै तिसु गुरसिख की जो आपि
जपै अवरहु नामु जपावै ॥ २ ॥ ।वा: गअु: म: ४
३जिस प्रकार (निरणै होवे)।