Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ४७७
६५. ।सज़चखंड पयान॥
६४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>६६
दोहरा: अटल निठुर संदेह बिन, कहे वाक निरधार।
सुनि गुर ते अुमराव सो, कोपो दुशट गवार ॥१॥
चौपई: संग मुलाने बैन बखाने।
कहो शाहु कोनांहिन माने।
लोह पिंजरे महि भी पायो।
नहीण त्रास कुछ मन महि लायो ॥२॥
अनिक भांति की पाइ सग़ाइ।
करि जबरी ते लेहु मनाइ।
समुझायहु किम समुझै नांही।
आवन जानि निफल इन पाही ॥३॥
भनै मुलाना छुटै न कोई१।
लखीयति प्रान हान इन होई।
अुत हग़रत को हठ नहि टरै।
इत इक सम२ ही हठ को धरैण ॥४॥
दोनहु कहि गमने ढिग शाहू।
सकल प्रसंग भनो तिस पाहू।
कोणहू नहि मानहि कुछ कहो।
कैद* कशट ते त्रास न लहो ॥५॥
मुदत मनिद३ बदन जिन केरा५।
हम समुझाइ रहे बहुतेरा।
सुनि बोलो मूरख चवगज़ता।
जे अस धरम बिखै दिढ रज़ता ॥६॥
-ते बहादर नाम धरायो।
कौं मायना या महि पायो४।
हिंदुन के गुर पूज कहावहु।
१किसे तर्हां (इह) छुज़ट नहीण सकदा।
२इको जिहा।
*पा:-ब्रिंद।
३इंदुमणी (दी तर्हां) जिन्हां दा चिहरा खुश है। ।मनि+इंदु = इंदुमणि अरथात चंद्रकाणता मणी
जो चंद दीआण किरनां तोण बणी मंनी जाणदी है॥(अ) खुशी वरगा भाव प्रसंनता सरूप।
४की अरथ इस विच रज़खिआ है?