Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ४७८
६३. ।श्री तेग बहादर जी अवतार॥
६२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>६४
दोहरा: गोइंदवाल, खडूर ते, मअु, डज़ले, मंडालि।
सभि आए नर नारि गन, रोदति शोक बिसाल ॥१॥
चौपई: गुर महिलनि महि शबदरुदन को।
भयो बिसाल मेलियनि गन को+।
करहि सराहनि गुन समुदाए।
सिमरि सिमरि१ गन त्रिय रुदनाए ॥२॥
वहिर गुरू ढिगि बाति करंते।
भागवान दीरघ अुचरंते।
पिखहु फनाह जहान तमाम२।
नहीण रहति निति काहु मुकाम३ ॥३॥
नदी प्रवाह चलो जग जाति।
जीरनि बनति बिदति दिन राति४।
भज़ले तेहण अपर जि साने।
सभिनि सुनावति एव बखाने ॥४॥
अहै जथारथ श्री गुरु कहो।
इस बिधि कहि करि डेरा लहो।
सेवा परि मसंद गन छोरे।
सरब सेव कीनि सभि ओरे ॥५॥
सतिगुरु बैठति लाइ दिवान।
दिन प्रति आवहि लोक महान।
दीरघ चौकी हुइ दुइ काल५।
सुनि करि संगत मिली बिसाल६ ॥६॥
+अुज़पर पिछले अंसू दे अंक ४२ विच गुरू जी वलोण रोंा बंद करन दा हुकम कवी जी दज़स आए
हन, फेर किवेण रों दा सज़द जारी हो सकदी है। हां, माता जी दे गुणां ते पिआर दी याद विच
हिरदे दे डूंघे वलवले तोण नैंी नीर आ जाणा कुदरती बात है। नानक रुंना बाबा जाणीऐ जे रोवै
लाइपिआरो।
१याद कर करके।
२सारा जहान (जे तुसीण) वेखदे हो फनाह होण वाला है।
३किसे दी थिरता।
४रात दिन विच प्रगट ही पुराणा हुंदा जाणदा है। (पुरश, भाव आयू बीतदी जाणदी है)।
५दोनो वेले।
६सुनंां करदी है संगत बहुती मिलके।