Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ४८२

५४. ।लालू बालू आदि सिज़खां प्रति अुपदेश॥
५३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५५
दोहरा: लालू बालू बिज़ज१ है,
तीसर प्रिय२ हरि दास।
मिलि आए दरशन करनि,
श्री अरजन के पास ॥१॥
चौपई: बंदि हाथ बंदन करि बैसे।
अरग़ बखानी तीनहु ऐसे।
हमको निज अुपदेश सुनावहु।
निज सिज़खनि के साथ मिलावहु ॥२॥
जिस बिधि होइ अुधार हमारा।
करहु आप अुपदेश अुचारा।
सुनि श्री मुख ते बाक बखाने।
मान मोह मतसर करि हाने ॥३॥
पर का बुरा न राखहु चीत।
तुम को दुख न होइ किस रीति।
मिलहु बिकस गुर सिज़खनि साथ।
बंदहु भाअु संग जुगहाथ ॥४॥
मिज़ठा बोलनि अर निव चलना।
वंड खावंा हित धरि मिलना।
धरम किरत ते करनि अहारा।
पंचहु करम देति सुख सारा ॥५॥
इह सभि करहु बिसारहु नांही।
हुइ कज़लान ग्रिहसत के मांही।
सुनि करि सतिगुरू को अुपदेश।
करो कमावनि कटे कलेश ॥६॥
दोहरा: धीर निहालू तुलसीआ, बूला चंडीआ आइ।
श्री गुर अरजन शरन, को जानी मन सुखदाइ ॥७॥
चौपई: बैठि निकट सतिगुर के सोइ।
किरतन होति श्रवन हुइ जोइ।


१जात है।
२पिआरा।

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