Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६२।पंथ शिरोमणता॥
दोहरा: सरब शिरोमणि खालसा, रचो पंथ सुखदाइ।
इक बिन गंदे धूम ते, जग मैण अधिक सुहाइ* ॥४३॥
अरथ: (सतिगुर जी ने इह) खालसा पंथ सारिआण तोण शिरोमणी (अते सारिआण ळ)
सुख देण वाला रचिआ है जो जगत विच (सारिआण तोण) सुहणा लग रिहा है
(इक होर वाधा इह है कि सारा जगत) गंदे धूंए (ळ लग पिआ है पर
इह) इको (कौम है जो इस तोण) बिना है।
भाव: पंजाब खास विच सिज़ख सलतनत अपणे तेज विच हैसी जो अज़सी हग़ार फौज
मैदान जंग विच इक दम लिआ सकदी सी ते सतलुज पार कितने छोटे
महाराजे ते राजे बणे ते सरदारीआण ते जगीरदार घराणे अज़खां दे साम्हणे हन
ते वध रिहा तेज कवि जी ळ दिज़स रिहा है कि खालसा सरब शिरोमणि है,
तेज प्रताप बाहू बल करके, नाल ही बंदगी भजन गुरसिज़खी दे जीवन करके
अुस ळ सरबदा सुखदाई कहिणदे हन। अपणे सरीरक बल चड़्हदीआण कला दे
जब्हे ते आन बान वाली शान दे सरीरक रूप रंग चड़त बड़्हत विच भी सभ
तोण सुहणा दिदारी है। पज़छमी लोक गंदा धूआण (बिखिआ, तमाकू) एथे
लिआए, हिंदूमुसलमान सभ इस ने जिज़त लए, पर खालसे ने इस ळ ना
छोहिआ, इस दा ना छुहणा बी खालसे दे बल प्राक्रम ते अुज़दम दा कारण
हैसी, पर इस तोण बहैसीअत कौम बचंा बी इक शिरोमणी गज़ल है।
।पंथ जोग नमसकाराण॥
सोरठा: श्री सतिगुर को रूप, जगहि जोति जाहर जगत।
पुंज सु पंथ अनूप, करि बंदन रचिबे लगति ॥४४॥
।जगहि = जग रही है। अनूप = जिस वरगा होर नहीण सुंदर। ॥
अरथ: अनूपम ते स्रेशट (खालसा) पंथ सारा श्री सतिगुर जी दा सरूप है, (जिस
दी) जोत ग़ाहिरा जगत विच जग रही है, (अुस ळ हुण) बंदना करके (मैण
गुर प्रताप सूरज ग्रंथ) रचं लगा हां।
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम राजे मंगला चरन बरनन नाम
प्रथमो अंसू ॥१॥
अरथ: स्री गुर प्रताप सूरज (नामेण) ग्रंथ दी पहिली रास दे पहिले अधाय दी
समापती है, जिस दा नाम मंगला चरणां दा वरणन है ॥१॥
*इह छंद अगे रुत ५ अंसू ३८ अंक ६ विच वी आवेगा।