Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ६०
७. ।पहाड़ीआण ते सूबिआण दी तारी॥
६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>८
दोहरा: *नहीण राज किस देश को, दुरग बिसाल न कोइ।
चमूं सिंघ कबि बहुत है१, कबि घर गमनैण सोइ ॥१॥
चौपई: आप गुरू धन विज़दा पंडित।
गग़ब गुग़ारे बाननि छंडति२।
पैणडखान से जिनहि खपाए।
तीर अनूपम ब्रिंद चलाए ॥२॥
श्री नानक गादी पर थिरो।
सतिगुर रामदास बिदतयो*।
तिन को सुत स्री अरजन होवा।
मति संतन को सुनि करि जोवा३ ॥३॥
श्री गुर हर गोबिंद तिन नदा।
भयो प्रथम सो बीर बिलदा।
हग़रति शाहजहां के संग।हति अुमराव करे वड जंग ॥४॥
तिस कौ पौत्र बिलद बहादुर।
पिता संत श्री तेग बहादर।
तिनहु ग़िमीण तहि मोल सु लीनी।
आनद पुरा बसावन कीनी ॥५॥
इह सभि भेव आप सोण कहो।
करहु काज जैसे चित चहो।
भीम चंद ते सुनोण ब्रितांत।
जानोण सूबे तबि भलि भांत ॥६॥
कहो न्रिपति! ले करि दल जावहु।
चहु दिशि घेरहु जंग मचावहु।
दोनो सूबे हुइ तुम साथ।
*पिछली गज़ल ही जारी है।
१कदे बहुती (कज़ठी) हो जाणदी है।
२तीर चलाअुण विच गग़ब करदा है भाव निपुंन है।
*पा:-रामदास सोढी अवतरो।
३(अुसदा) मता संतां वाला सी (असां) पता लाके सुणिआ है।
।करि जोवा=ढूंड करके, पता लाके॥।