Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ४९१५५. ।गंगू नाअू आदि सिज़खां प्रति अुपदेश॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५६
दोहरा: गंगू नाअू सहिगला, रामा धरमा और।
पंचम अुज़दा जानीए, मिलि कै हुइ इक ठौर ॥१॥
चौपई: स्री अरजन की पर करि शरनी।
बंदन करि कै बिनती बरनी१।
हुइ करि सिज़ख रहे गुर पास।
इक दिन करति भए अरदास ॥२॥
बेद कतेब मुनी अवतार।
पंडित गानी भए हग़ार।
सभिहिनि भाखो ब्रहम अनत।
खोजि रहे नहि पायहु अंत ॥३॥
ब्रहम जु कहै सज़चिदा नद।
श्री नानक सो रूप मुकंद।
ब्रहम अवतार कहै बज़खात२।
जानै परे सभिनि साखात३ ॥४॥
सो तौ अंत जानते होइ४।
अपनो अंत लखै सभि कोइ।
श्री अरजन सुनि संसै ऐसे।
अुज़तर दियो तिनो कहु तैसे ॥५॥
आदि अंत ब्रहम की जे होइ।
श्री नानक जी अुचरति सोइ।
जिस के कबहूं आदि न अंत।
कहिबो तिस को बनहि बिअंत ॥६॥
जैसे बेद नराइन सास।
बरनन करोब्रहम कुछ तास५।
मधुसूदन६ सो ब्रहम सरूप।


१कही।
२प्रगट।
३प्रगट।
४भाव गुरू नानक जी तां इस ब्रहम दा अंत जाणदे होसं।
५(वेदां ने) कुछक तिस ब्रहम ळ वरणन कीता है।
६विशळ।

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