Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 486 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५०१

तिहसंग सतिगुर कीनि बखान।
हे मांकचंद लेहु विदान१ ॥३०॥
करहु जोर तिह हतहु बनाइ।
सुनि करि चरन परो सहिसाइ२।
गुर निज कर तिह पीठ धरो है।
ले विदान को बीच बरो है ॥३१॥
कर को करि बल३ मारति भयो।
टुटो जल सो थल भरि गयो।
बूडो मांक हाने४ प्रान।
सतिगुर सुनि ब्रितंत इह कान ॥३२॥मांक होइ५ सु मरतो नांही।
ले आवहु तिस को हम पाही।
सुणि मांक को लाइ निकास।
धरो आनि करि सतिगुर पास ॥३३॥
दाहन६ चरन सीस को छायो।
अुठि बैठो जनु सुपति जगायो।
सिर पर सतिगुर नै कर फेरा।
भयो प्रकाश बिनाशि७ अंधेरा ॥३४॥
सभि रिधि सिधि बखशन को करो।
नामु जीवड़ा तिस को धरो।
माईदास हकारो पास।
सतिगुर कीनसि बाक प्रकाश ॥३५॥
तोहि गुरू८ इहु मांक चंद।
राखहु इन सोण प्रेम बिलद।
मंत्र९ आपनो तोहि बताइ।

१वडा हथौड़ा, घन, वदान।
२शीघर ही।
३हथां दा बल करिके।
४नाश होए।
५जो मांक है।
६सज़जा।
७नाश करके।
८भाव गुरमुख। मुरशिद।
९गुरमंत्र।

Displaying Page 486 of 626 from Volume 1