Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 488 of 591 from Volume 3

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५०१

५६. ।मूला सुजा आदि सिज़खां प्रति अुपदेश॥
५५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५७
दोहरा: मूला१, सूजा१, धावंे२, चंदू१, चौझड़२ आस।
रामदास१ भंडारीआ२, बाला१, सांईदास१ ॥१॥
चौपई: खशट मिले श्री अरजन पास।
पग बंदन कीनी अरदास।
गुरू गरीब निवाज जि प्रानी।
करम करति दै बिधि सभि जानी३ ॥२॥
धरम राइ के ढिग सभि कोइ।
पाप पुंन को लेखा होइ।
फल दुनहनि के नारे नारे?
किधौण शेख रहि दे फल वारे४? ॥३॥
श्री अरजन सुनि बाक बखाने।
चार प्रकारनि के सिख जाने।
इक सहिकाम करम के करता।
बिय निशकाम करम को धरता ॥४॥
करिअुपासना त्रिती पछानो।
चतुरथ ब्रहम गानी सिख जानो।
तुम चारनि मैण बूझहु कौन५।
करहि सुनावनि जस गति तौन६ ॥५॥
सुनि सिज़खनि भाखो जे चारहु७।
जिम ब्रितांत हुइ तथा अुचारहु।
गुरू कहनि लागे तिस काल।
जिम इक होति महां महिपाल ॥६॥


१नाम हन।
२जात सी।
३भाव सकाम ते निशकाम जाणदे हन।
४कटौती करके बाकी रहे (पाप या पुंन) फल (देणदे हन कि नहीण) डपंजाबी = विआड़ना =
लीतीआण रकमां ळ दिज़तीआण करमां जा वसतां दे मुल नाल गिं गठके लेखा चुकाअुणा भाव इह है
कि पाप दे दुख ते पुंनां दे सुख अज़ड अज़ड मिलनगे कि पाप वा पुंन आपो विच काट होके बाकी जो
रहू अुसदा फल मिलेगा। देखो अंक १६ इसे अंसू दा।
५पुज़छदे हो किस ळ।
६जैसे तिन्हां दी दशा हुंदी है।
७जो चारे हन (तिन्हां दा)।

Displaying Page 488 of 591 from Volume 3