Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५०४

५४. ।अकबर दी गुर दरशन हित लालसा। गंगोशाह बज़सी खज़त्री॥
५३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>५५
दोहरा: अकबर दुरग१ चितौड़ को, टुटो न२ करते जंग।
श्री सतिगुर ढिग नर पठो, बहुत बेनती संग ॥१॥
चौपई: पीर फकीर प्रथम बहु सेवे।
हुइ प्रसंन सभिहिनि बर देवे।
नहीण फते भा दुरग चितौर।
अबि मैण शरन हाथ को जोरि ॥२॥
सुनि गुर कहो तबहि गड़ छूटे।
इहां बापिका* को कर टूटे।
तब ते रहो शाहु को मानव३।
कड़+ टूटो जबि ही तिन जानव४ ॥३॥
लिखि ले गयो वार तिथि मास५।
पहुणचो चलि अकबर के पास।
जिस छिन कड़ टूटो तिस काल।
तबहूं छुटो चितौड़ बिसालु ॥४॥
अकबर अुर प्रतीत बडि आई।दरशन करिबे चाह बधाई।
आम खास महिण करी प्रशंशा६।
श्री नानक अज़लहि७ नहिण संसा ॥५॥
आर८ कामल९ वली१० वलाइत११।


१किल्हा।
२फते ना होइआ।
*पा:-बावली।
३आदमी।
+पा:-कर।
४जाणिआण।
५महीनां।
६सभनां विच अुसतती कीती।
७परमातमा।
८रज़ब ळ पुज़जिआ
।अ: आरिफ = गानवान॥।
९पूरा, कमाल।
१०औतार, वली।
११देश दा।

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