Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६७
तुरक तेज द्रिढ तरू१ अुखारा*।
हिंदु धरम राखो प्रतिपारा ॥२५॥
भाई रामकुइर तब रहे।
रामदास+ के ग्राम जु लहे।
तहां बिराजति दिवस बिताए।
केतिक सिंघ तिनहुण ढिग आए ॥२६॥
साहिब सिंघ आदिक बुधिवान।
जिन के सतिगुर पद को धान।
कथा गुरुन की सुनिबे चाहति।
सुनि सुनि गुन को रिदा अुमाहति ॥२७॥
श्री गुरबखश सिंघ++ के पास।
सभि सिंघन कीनसिअरदास।
महिद२ प्रसंग गुरन के जेते।
करुना करहु अुचारहु तेते ॥२८॥
सभि सिख संगति सुनिबे चाहति।
सतिगुर गुन को महां अुमाहित।
चंद्र बदन ते सुधा समाना।
प्रगट करहु पीवहिण पुट काना३ ॥२९॥
कमल बदन मकरंद बचन हैण।
मधुप४ सिंघ अभिलाखति मन हैण।
भाई राम कुइर सुनि श्रौनि।
कहो चहति गुर गुन सुख भौन ॥३०॥
इह प्रसंग सुनि श्रोता सारे।
मिलि संतोख सिंघ निकटि अुचारे।
राम कुइर की पूरब कथा।
हमहिण सुनावहु होई जथा ॥३१॥
१पज़का ब्रिज़छ।
*पा:-तरु मूल अुखारा।
+इह पिंड रावी दे नेड़े अंम्रितसर दे ग़िले विच अुतर रुख ळ है।
++साहिब रामकौर जी दा नाम जो अंम्रत छक के रखिआ गिआ सी।
२बड़े।
३कंनां रूपी डोनिआण नाल पीवीए।
४भौरे।